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Saturday, October 28, 2023

जाने लगूँ तो आ जाना

 



कि ज़िन्दगी गुजरी हो 

चाहे ऐसे -वैसे ही 

दिखाने मौत पर अमीरी हमारी 

आ जाना 

जाने लगूँ तो आ जाना 


हँसाया हो, रुलाया हो 

खरी - खरी सुना दी हो 

कोई सलाह दे दी हो 

कभी किसी काम आयें हो 

कि असर रहा हो हमारा भी 

तुम पे थोड़ा सा 

एहसास कराने 

आ जाना 

जाने लगूँ तो आ जाना 


वो जो बातें अधूरी सी रही 

वो जो मिलना ना हो पाया 

वो जन्मदिन, वो सालगिरह, ये दिन, वो दिन 

वो सपने, वो प्लान, लेकिन - वेकिन 

बाकी वो सारा कुछ जताने 

आ जाना 

जाने लगूँ तो आ जाना 


दर्द समेटे रखना, 

चिड़चिड़ाना, छटपटाना 

दिखावटी सा अक्सर वो 

कम्बख्त मुस्कुराना 

रंग हमारे भी थे थोड़े कुछ मगर  

औरों को बताने 

आ जाना 

जाने लगूँ तो आ जाना 








4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

हरीश कुमार said...

बहुत सुंदर रचना

Ananta Sinha said...

आदरणीय सर , सादर प्रणाम । बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण कविता। हर व्यक्ति की अंतिम इच्छा यही होती है कि उसके प्रियजन उसके अंत समय में उसके निकट हों और उसे सदैव स्मरण रखें । "मैं जाने लगूँ तो आ जाना" अपने आप में ही एक पूरी भावना है । पुनः प्रणाम एवं आभार ।

शिवम कुमार पाण्डेय said...

वाह, दिल को छू गया।

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