कि ज़िन्दगी गुजरी हो
चाहे ऐसे -वैसे ही
दिखाने मौत पर अमीरी हमारी
आ जाना
जाने लगूँ तो आ जाना
हँसाया हो, रुलाया हो
खरी - खरी सुना दी हो
कोई सलाह दे दी हो
कभी किसी काम आयें हो
कि असर रहा हो हमारा भी
तुम पे थोड़ा सा
एहसास कराने
आ जाना
जाने लगूँ तो आ जाना
वो जो बातें अधूरी सी रही
वो जो मिलना ना हो पाया
वो जन्मदिन, वो सालगिरह, ये दिन, वो दिन
वो सपने, वो प्लान, लेकिन - वेकिन
बाकी वो सारा कुछ जताने
आ जाना
जाने लगूँ तो आ जाना
दर्द समेटे रखना,
चिड़चिड़ाना, छटपटाना
दिखावटी सा अक्सर वो
कम्बख्त मुस्कुराना
रंग हमारे भी थे थोड़े कुछ मगर
औरों को बताने
आ जाना
जाने लगूँ तो आ जाना
4 comments:
सुन्दर
बहुत सुंदर रचना
आदरणीय सर , सादर प्रणाम । बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण कविता। हर व्यक्ति की अंतिम इच्छा यही होती है कि उसके प्रियजन उसके अंत समय में उसके निकट हों और उसे सदैव स्मरण रखें । "मैं जाने लगूँ तो आ जाना" अपने आप में ही एक पूरी भावना है । पुनः प्रणाम एवं आभार ।
वाह, दिल को छू गया।
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