निजीकरण श्मशानों का
क्यों नहीं हुवा अब तलक ?
इस बारे में क्या किसी को
सूझा ही नहीं ?
वो जो आजीवन सहूलियत में पला
ब्रांड खाया-पहना, ब्रांड में ही चला
सरकारी श्मशानों में साधारण जले
शीघ्र दाह का क्रम पाने परिवार पहचान ढूंढे
ये भी कोई बात हुई
हाई क्लास श्मशान बनें
अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित
चारों तरफ हरियाली, फंवारे
मल्टी स्टोरी पार्किंग, रेस्ट रूम
नाश्ता, चाय पानी की व्यवस्था
वेद मंत्र आदि का उच्चारण हो
दिव्य वातावरण बने
विविध विकल्प उपलब्ध हो,
अंतिम क्रिया के पसंद करने को
पैकेज सिल्वर, गोल्ड,प्लैटिनम आदि
गाय का शुद्ध घी, गोबर, श्मशान की गौशाला से
लकड़िया हर तरह की,
पुष्प नाना प्रकार के,
इलेक्ट्रॉनिक चिता का विकल्प तो होगा ही
पर्यावरण, समय की भी
समझ-कीमत होगी किसी को
कुशल कर्मचारी प्रबंधन करें,
हर कार्य- विधि का
मार्गदर्शन हो अंतिम-क्रिया विशेषज्ञ ब्राह्मण का
चिता सजे श्रेष्ठ आयोजन से
परिजन बस दाह दें और
वातानुकूलित कक्ष में इत्मीनान से बैठे
देखें सीधा प्रसारण स्क्रीन पर
स्वजन के अंत से अनंत के प्रयाण का
मृत्यु के बाद की शोभा का, शान का
अस्थियाँ लेने-पहुँचाने से विसर्जन तक
बारहवीं, तेरवी, उठावने का प्रबंधन
वीडियो रिकॉर्डिंग, फोटो, अख़बारों में सूचन
सुविधाएं उपलब्ध हो जैसी चाहे परिजन
अस्पतालों का सीधा अनुबंध हो,
लैब की तरह श्मशानों से भी
मुफ्त रजिस्ट्रेशन करें, चिता बुक करें
एक पाठ्यक्रम चलाया जाये
अंतिम-क्रिया प्रबंधन पर
रोज़गार का नया एक क्षेत्र काबिज़ हो
कि भार इससे कुछ तो काम होगा
सरकारी श्मशानों का
गरीब मृत्यु पर तो कम से कम
कतारों में न झुलसे ..