इन दिनों जब कोई
हाल पूछता है,
चुभता है, क्यों ये
सवाल पूछता है
झूठ ही कह भी दो,
कुशलता चाहे
लगता है मानो,
'क्यों है' पूछता है
ऑनलाइन हर कोई
खुशहाल ही दिखा,
झाँका ज़िन्दगी में
हर शख्स झुझता है
मैं मेरे 'मैं' में रहूँ,
तुम अपने 'मैं' में रहो,
बुलबुला 'हम' का
उछलता है, फूटता है
राय से पेट भरता अगर,
लंगर ही लगवा देते
बिन मांगे बँट रही,
कौन पूछता है
अपनत्व का विज्ञापन
आकर्षित कर सकता है,
जाले नजरों में हो
कम सूझता है
इन दिनों जब कोई
हाल पूछता है
चुभता है, क्यों ये
सवाल पूछता है
2 comments:
Very nice
Sadly true! Well written!
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