THEMES

LIFE (56) LOVE (29) IRONY (26) INSPIRATIONAL (10) FRIENDSHIP (7) NATURE (3)

Wednesday, December 31, 2014

चलो फिर नए से शुरू करते हैं...

एक चाह नयी सी रखते हैं
कुछ लक्ष्य नया सा लेते हैं
जो बीत गया वो कल था
एक नयी कहानी बुनते हैं
चलो फिर नए से शुरू करते हैं

जो भूल हुई, फिर न दोहराएं
हम गिरकर ही तो सँभलते हैं
जो कुछ भी वक़्त से सीखा है
अनुभवों को साझा करते हैं
चलो फिर नए से शुरू करते हैं

कई साथ मिले, कुछ बिछुड़े भी 
हर यादों को ताज़ा रखते हैं 
हर लम्हे में एक सुन्दर रंग है 
जीवन हर इक रंग जी लेते हैं।  
चलो फिर नए से शुरू करते हैं 

Tuesday, April 22, 2014

ये नेता है, रंग बदलेंगे

ये नेता है, रंग बदलेंगे 

कुछ चुनावों से पहले 

कुछ चुनावों के बाद. 
कभी चुनावी साथी
कभी संग बदलेंगे 
ये नेता है, रंग बदलेंगे 

कुछ मौन रह कर 
तो कुछ बकबका कर, 
कुछ बस नौटंकियों से
देश का ढंग बदलेंगे 
ये नेता है, रंग बदलेंगे 

जाति-धर्म में बांटेंगे  
इतिहास नए सुनाएंगे, 
लुभावने से वादे देकर 
जनता को बस ठग लेंगे 
ये नेता है, रंग बदलेंगे 

कोशिश इस बार करें  
सोचें-जानें-समझें फिर चुनें 
वर्ना फिर इनका क्या है 
नस्ल गिरगिटिया, रंग बदलेंगे 
ये नेता है, रंग बदलेंगे 

Wednesday, March 19, 2014

मालाएं... A Photo Poetry

Through the Viewfinder - Photographs by Aditya


मालाएं हैं ये उन फूलों की 
प्रतिक है जो
श्रद्धा के, आस्था के 
हर देवालयों में अर्पित  
कहीं प्रार्थना तो कहीं बन दुवाएं 

सजता है, महकता है 
इन्ही से हर श्रृंगार 
इन्हे पहनाकर संबंध बने 
दिल एक हुवे परिवार 

ये बरसे आदर-हर्ष में 
हर उत्सव, हर त्यौहार 

जो ख़ुशी से आते हैं 
संग हँस लेती हूँ 
जो शोकाकुल आये 
गम बाँट लेती हूँ 
मेरे लिए तो ये हैं बस 
पेट पालने का आधार 


A Creative JV of Photography (Aditya) and Poetry (Prakash). Aditya is my colleague and friend. Away from HR (human resource) this is a experimentation on different areas of creativity. This one was clicked at Khanderao Market, Vadodara, Gujarat.   
Facebook page of Aditya :https://www.facebook.com/photosbyaditya


Sunday, February 2, 2014

अखबार छपते ही हैं अब तो रद्दिवालों के लिए...
















अखबार छपते ही हैं अब तो रद्दिवालों के लिए 
सच्चाई लुप्त होती जा रही पढ़नेवालों के लिए 

एक वक़्त था जब हर सुबह रहता था इंतज़ार 
अब मंगवाते हैं आदतन; रश्म निभाने के लिए 

कागज़ भी बेहतर हुवा, छपाई अब रंगीन 
क्या बस यही काफी हे बेहतर बनाने के लिए? 

सम्पादकीय असर में डूबे, लेखों में कसीदे 
पत्रकारिता स्तरहीन पहला बन पाने के लिए 

समाचारों में विज्ञापन या विज्ञापनों में समाचार 
टंटोलना पड़ता है हर कोना समझ पाने के लिए 

'प्रैस' कहलाना औहदा बना, कहीं बना व्यवसाय 
कहीं जरिया जनता को, गुमराह बनने के लिए 

माना कुछ होंगे शायद आज भी सच्चे-ईमानदार 
दौर मुश्किल बड़ा इस राह चलनेवालों के लिए  

अखबार छपते ही हैं अब तो रद्दिवालों के लिए... 


Theme by : Shree Navin C. Chaturvedi (http://thalebaithe.blogspot.in/)

श्री नवीन सर के एक फेसबुक स्टेटस से ये विचार आया/ उठाया और आगे जो हुवा वो आपके सामने प्रस्तुत :-)


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...