कवितायेँ जो लिख देते हैं तुम पे
चलते- फिरते,सोते- जागते
पड़ी रहती हैं, अक्सर
डायरी- नोटपैड के पन्नों पे
कुछ मोबाइलिया बनी
त्वरित संदेशों में,
कुछ कहीं किताबों के बीच
अकेली, गुमसुम
तो कुछ अस्त-व्यस्त, बेसहारा
कुछ तो बस खो ही गयी,
उन्हें याद कर पाना भी मुश्किल है
हर अनुभव, हर ख्याल तुम्हारा ही तो है
बस शब्द मेरे हैं टूटे-फूटे
तुम्हे अच्छे लगते हैं न, शायद
चित्रकार होते
तो बात अलग होती जरा
कतारें लग जाती तुम्हारी तस्वीरों की
हर इक अदा को रंग देते,
हमारे रंगों से
केनवास इतराता खुद पर
एक संग्रहालय बनाना पड़ता
इन निशब्द मगर
बोलती तस्वीरों को रखने
सहेजने खातिर
माना इस कला से दूर हैं
पर क्या ये सच नहीं
मेरे शब्द बना ही तो देते हैं, एक तस्वीर
हर बार, हर कविता में
क्या ये नहीं,
कलम की चित्रकारी ?
9 comments:
कलम की ये चित्रकारी बहुत सुन्दर लगी :)
wah bahut khoob....kavi kay man ki baat
सुंदर !
अपना पाना अंदाज़ है चित्रकारी का ...
धब्दों की चित्रकारी भी छाप छोड़ती है ... लाजवाब ...
कल 11/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
शायद यही है :D
बहुत अच्छे!
Blasphemous Aesthete
sahi hai kya khub hai ye kalam ki chitrakari..
कैनवस पर की गई चित्रकारी आंखों को सुकून देती है...औक कलम की चित्रकारी.. दिल को
बहुत सुन्दर भाव..
शब्दों को नयी पहचान देना आपकी कलम की विशेषता है
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