शिक्षा का यूँ तो हम सबको अधिकार मिला है
कहीं मुफ्त पुस्तकें- बस्ता, कहीं आहार मिला है
कहीं दिखावी दाखिले, कहीं कागज पर स्कूल
कहीं साइकिल, कहीं लैपटॉप,ये कैसा सिलसिला है
शिक्षा प्रोत्साहन के क्या बस अब यही रह गए तरीके
एक अध्यापक, विषय अनेक, क्या पढ़ लें, क्या सीखें
पापी पेट बड़ा दुखदायी, गरीबी सब कुछ भुलाती है
किताबें- बस्ते सब बिक जाते, मजबूरी बिकवाती है
बचपन देश का आज बाल मजदूरी से मैला है
हर गली-नुक्कड़ चायवाला, बालक ही मिला है
चाहता वह भी पढना, देखे अक्सर सपना है
सपने और हकीकत में, फासला धुंधला है
शिक्षा का यूँ तो हम सबको अधिकार मिला है...
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6 comments:
Good One!
अभी तक तो ये अधिकार किताबी ही है ...
जब तक राशन का जुगाड नहीं करती सरकार ... सब बाते बेमानी हैं ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 20/09/2013 को
अमर शहीद मदनलाल ढींगरा जी की १३० वीं जयंती - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः20 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
गलती सबकी है, समाज की सबसे ज्यादा, लेकिन, प्रत्येक व्यक्ति की भी | क्यूंकि मुफ्त प्राथमिक शिक्षा का अधिकार हमारे संविधान ने दिया है | हम डरते हैं |
Blasphemous Aesthete
बहुत अच्छा लिखा है...
अच्छा लिखा है आपने |
मेरी नई रचना में आपका स्वागत है |
इक नई दुनिया बनाना है अभी
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