मन में सैलाब बहता- उफनता रहा है
धैर्य ना जाने क्यूँ फिर पनपता रहा है
सोचा जहाँ कहीं भी बस, ठहर जाने को
वक़्त अचानक सिकुड़ता- सरकता रहा है
करेंगे इबादत पर ना मोहब्बत किसी से
मौसम ख्यालों का दिनों-दिन बदलता रहा है
परेशानियाँ आती जाती रही यूँही निरंतर
जीवन हर बार बिखरता - संभलता रहा है
मन में सैलाब बहता....
-
कमाल - प्रकाश
(मित्र कमाल और मेरा साथ में लिखने का ये दूसरा प्रयास...)
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Prakash-Kamaal |
13 comments:
soch ki girah ko napna bahut kathin hai aur aise mein sailaab hi aa jaye to ...kya kahen..accha likha hai...keep going!
too good....
बेहतरीन सुंदर गजल ,,,
RECENT POST : बेटियाँ,
शाबाश ..
कलम को मंगलकामनाएं !
बहुत खूब ... हर शेर लाजवाब है ...
वक्त अचानक सिकुड जाता है जब खुशी आती है ... और फ़ैल जाता है दर्द में ..
लाजवाब गज़ल ..
खूबसूरत ग़ज़ल.
सुंदर रचना ........
waah...kyaa baat hai!!
From conflict 2 clarity.....
Carry on...MASTERMINDS!
ये ख्यालों का मौसम घड़ी-घड़ी धूप-छांव-सा बदलता है...
बढ़िया रचना....
Gr8 Bhai.......bau divase ,,,,,,,,,nava koi shabdo ni bandhani jova mali.....e pan safed akshar ane kala color na kagal par.......Ek dam navin......Bhai,,,,,,gajjab,.,,,.,.,.,.,
वाह! दिल को छूती बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
touching....
बहुत सुन्दर नज़्म भाई
दिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
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