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Saturday, May 25, 2013

सैलाब...

मन में सैलाब बहता- उफनता रहा है 
धैर्य ना जाने क्यूँ फिर पनपता रहा है 

सोचा जहाँ कहीं भी बस, ठहर जाने को 
वक़्त अचानक सिकुड़ता- सरकता रहा है 

करेंगे इबादत पर ना मोहब्बत किसी से 
मौसम ख्यालों का दिनों-दिन बदलता रहा है     

परेशानियाँ आती जाती रही यूँही निरंतर 
जीवन हर बार बिखरता - संभलता रहा है 

मन में सैलाब बहता....

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कमाल - प्रकाश 
(मित्र कमाल और मेरा साथ में लिखने का ये दूसरा प्रयास...) 
Prakash-Kamaal



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