मन में सैलाब बहता- उफनता रहा है
धैर्य ना जाने क्यूँ फिर पनपता रहा है
सोचा जहाँ कहीं भी बस, ठहर जाने को
वक़्त अचानक सिकुड़ता- सरकता रहा है
करेंगे इबादत पर ना मोहब्बत किसी से
मौसम ख्यालों का दिनों-दिन बदलता रहा है
परेशानियाँ आती जाती रही यूँही निरंतर
जीवन हर बार बिखरता - संभलता रहा है
मन में सैलाब बहता....
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कमाल - प्रकाश
(मित्र कमाल और मेरा साथ में लिखने का ये दूसरा प्रयास...)
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Prakash-Kamaal |