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Saturday, February 2, 2013

पेड़ चल रहे हैं...

Courtesy: Harshal Jariwala

Courtesy: Harshal Jariwala
पेड़ चल रहे हैं 
कभी भागे जा रहे हैं 
दूर कोरे मैदानों में,

खेतों में कहीं तैयार फसल 
तो कहीं लंबी मेड़ें 
मानो 
किसीने मैदानी चित्रकारी की हो 

तभी नज़र आया  
बैलों के साथ खेत जोतता किसान 
याद दिला गया 
की हमारा देश कृषिप्रधान है 

कुछ पहाड़ भी आये-गये 
बड़ी तेजी से 
पर उनकी स्थिरता दूर तक दिखाई देती रही

कहीं-कहीं बड़े पत्थरों पर 
बिना किसी सहारे टिके पत्थर 
बड़े हतप्रभ करनेवाले थे 

नदियाँ, तालाब, पोखरे 
और उनके आस-पास 
रोजिंदा कार्य करती महिलाएं 
पानी पीते, नहाते पशु 
बड़ा अजीब लगा देख खुले में शौच करते लोगों को 
हमें विकसित कहलाने में 
अब भी वक़्त है   

मदिरों, मस्जिदों से 
आयी कही आरती, अजानों की आवाजें
दूर दिखे कुछ बच्चे वेशभूषा में  
और पास ही एक स्कूल 
स्मृतिपटल पर 
अपना बचपन याद आ गया 

तभी अचानक बदलती पटरीयाँ
करीब आते कुछ मकान, 
सड़क, रेल के ढाले
और कतारों में रुकी गाड़ियाँ व् लोग 
बता रहे थे की कोई स्टेशन आ रहा है     

सफ़र बड़ा अदभूत है 
भारत का हर रंग
लगता है; 
ट्रेन की इस खिड़की से गुजर रहा हो...


-
Poetry written in train on 19.01.2013 while travelling from Secunderabad towards Vadodara.. 
  

6 comments:

vishwa said...

good one...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

अद्भुत बेहतरीन,अभिव्यक्ति,,,,

RECENT POST शहीदों की याद में,

दिगम्बर नासवा said...

रेल की खिड़की से देखा नज़ारा सच में अलग अलग रंग भर देता है ... नए अंदाज़ में नज़ारा दिखता है ...

Sumeet Dugar said...

Nice!

Meghna Bhatt said...

ditto my feelings.

Monika Jain said...

nice observation

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