धागे ख्यालों के,
उलझे-उलझे से
कई गाँठें भी बन चुकी है इनमें
कुछ जानें
कुछ अनजानें सुलझाते- सुलझाते
गाँठें
क्रोध की, नफरतों की
रुढियों की, भ्रांतियों की
अजीबोगरीब आस्थाओं की
सुलझानें का हर प्रयास
और उलझनें जैसा है
एक नुकीली सुई सी
हमेशा चुभती है
जिसे सिर्फ महसूस किया जाता है
छोर लम्बा बड़ा
मिलता नहीं इन धागों का
न ही छिद्र मिले इस सुई का
ख्यालों की ये उलझन शायद,
ज़िन्दगी के सुलझने,
और उसे समझनें
और उसे समझनें
के लिए जरुरी है...
8 comments:
happy Utrayan, Very Good art to put
the words in appropirate way/situation.
बहुत लाजबाब अभिव्यक्ति,,प्रकाश जी ,,
recent post: वह सुनयना थी,
bahut achcha likhe hain.....
this is exact my feelings.
too complicated to make sense..
but this nonsense is what keeps us going :)
सुन्दर अभिव्यक्ति.
जीवन समझने के लिए उलझन ओर सुल्झान दोनों जरूरी हैं ... पर कई गांठें उम्र भर नहीं सुलझती ...
bhai....good one....keep it up....
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