चलो फिर नये से शुरू करते हैं
एक शहर नया,
एक बस्ती नयी
एक मकान नया सा चुनते हैं
कि नयी बस्ती- मकान में
बातें पुरानी करते हैं।
चलो फिर नये से शुरू करते हैं...
नय़े चेहरे,
नये लोगों में
साथ नया सा ढूंढते हैं
उन लम्हों में खुद को
यादों से बचाया करते हैं।
चलो फिर नये से शुरू करते हैं...
सामान बिटोरा,
सारा बोरिया-बिस्तर,
ले आये सारा नए शहर
ये नया मकां
कभी घर होगा
इस आस सजाया करते हैं।
चलो फिर नये से शुरू करते हैं...
काफी कुछ लेकिन
बिखरा-टूटा,
इस बिटोरने-सजानें में
अश्कों को नहीं बहने देते
अश्कों को नहीं बहने देते
हँसते हैं, हँसाया करते हैं।
चलो फिर नये से शुरू करते हैं...
11 comments:
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति,,,,
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें,,,
RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,
म्यूजिकल ग्रीटिंग देखने के लिए कलिक करें,
Bahu j sundar abbhivyakti..
Kharekhar khu b j sundar
fantastic
Very good, It suits to my life currently.
Nice & simple... good going... :)
Dammm Good.....
ये हौसला बना रहे .....
इक नई शुरुआत ही ज़िन्दगी है .....!!
hmm good prakash bhai koi naya shahar mil gaya kya manager shahab ko ..jo b ho hame ek sundr kavita mili.
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
nice
बेहद सुंदर शब्दों से पिरोई हुई रचना...
यकीनन हमेशा यही बात ज़हन में रहना चाहिए कि चलो फिर नये से शुरु करते हैं।।।
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