पैसे पेड़ों पे उगते जो
कितनी खुशहाली होती
कितनी खुशहाली होती
हर सख्स बनाता बगीचे
हर तरफ हरियाली होती
ना महंगाई पे दुःख होता
ना कम आमदनी का रोना
लोग रहते भी इन पेड़ो पे
जंगल भरता हर कोना
गरीब कहीं ना ढूंढे मिलते
अमीर बनता हर जन-मन
न घोटाले, न भ्रष्टाचार
न काला होता गोरा धन
पर इसमें भी ये नेता
अपना लोहा मनवाते
अन्न उगाने पर प्रतिबन्ध
पैसों के पेड़ लगवाते
विदेशी निवेश फिर इन
बगीचों में भी मंगवाते
बाकि इनमे जो रहते शेष
वो तश्करी कर कमाते
बातें आज जो होती हैं
तब भी यूँ ही होती
पर, पैसे पेड़ों पे उगते जो
शायद खुशहाली होती....
12 comments:
i want to know where this tree is :p
A theme indirectly suggested by our P.M.
good one
Good thought... :)
Good one
बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,सुंदर रचना,,,,
RECENT POST : गीत,
waah..abhinal soch..shayd aisa hota..ya nahi bhi..
बहुत सुन्दर..!!!
कहावत को चरितार्थ करती कविता ...
की पैसे पेड़ों पे नहीं उगते ......
बहुत सुदर ....!!
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/10/blog-post_15.html
shaleen vyangy ke saath ek aas bhare man ki chaah ko sunder shabd diye hain.
्शायद ऐसा होता
पैसे पेड़ों पर उगते यदि
तो कितनी खुशहाली होती !
पैसों के लालच में भैया
हर घर में हरियाली होती !
गज़ब की सरल मौलिक अभिव्यक्ति में लाजवाब हो यार !
बधाई !
वाउ ,..पैसे का पेड
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