कहते-कहते ही संभल जाते हैं लोग
पलक झपकते ही बदल जाते हैं लोग
कितना आसान है झूठ कहना-सुनना
पकडे जाने पे, सकपकाते हैं लोग
स्वार्थी ये दुनिया, रिश्ते-नाते समाज
अचानक ही अपनापन जताते हैं लोग
बेवकूफ पैदा ही नहीं होते अब जहाँ मैं
चालाकी खून में ही अब पाते हैं लोग
कौन सच्चा, कौन झूठा, समझे कोई कैसे
एक चेहरे में कई चेहरे छुपाते हैं लोग
होड़ लगी है सबमें कुछ कर दिखाने की
इसीमें रास्ता थोडा सा भटक जाते हैं लोग
एक खोज ही होगा मनुष्य को समझना
इन्ही कोशिशों में आते, चले जातें हैं लोग...
इसीमें रास्ता थोडा सा भटक जाते हैं लोग
एक खोज ही होगा मनुष्य को समझना
इन्ही कोशिशों में आते, चले जातें हैं लोग...
11 comments:
Bahut khub!Ek khoj hi hoga manushya ko samajhana! Inhi koshishon mein aate jaate hain log!
beautiful....as alwayz..!! just correct'CHUPAATE' instead of 'CHUPATE'.CARRY ON...WID D ULTIMATE KHOJ...:-)
nice
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग,,,,
RECENT POST...: दोहे,,,,
बहुत खूब ....
कौन सच्चा, कौन झूठा, समझे कोई कैसे
एक चेहरे में कई चेहरे छुपाते हैं लोग
sundar aur sarthak, badhai.
खूबसूरत शेरों से सजी लाजवाब गज़ल .... बधाई ..
बहुत बढ़िया प्रस्तुती, सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
Nice one... liked the last lines a lot... Keep it up mate...
वाह....
बहुत बढ़िया गज़ल....
लाजवाब शेर कहे हैं.....
अनु
ekdm sahi..kaha..prakash...
Post a Comment
Your comments/remarks and suggestions are Welcome...
Thanks for the visit :-)