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Sunday, June 10, 2012

शौचालय या सोचालय... एक हास्य व्यंग

सोच शौचालयों में खिलती है
ना जाने कितने अविष्कार हुवे यहाँ से
मनुष्य की वैचारिक क्षमता
यहाँ शीर्ष स्थान पर होती है
ये वो शांति का केंद्र है
जहाँ मनुष्य खुद को खुद के करीब पाता है
और यही करीबी विचारों-चिन्तनों का रूप लेती है


शौचालयों के अदभुत प्रयोग होते हैं
कुछ महानुभाव यहाँ समाचार पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ लेते हैं
इस वक़्त वे देश और दुनिया पर गहन सोच करते हैं
कुछ बस ख्यालों में खोये से
ना जाने कितने दृश्य देख लेते हैं


नई पीढ़ी यहाँ से
दूर संचार के आश्चर्यजनक प्रयोग करती है
कोई लम्बी बातें, तो कोई चेटिंग
तो कोई फेसबुक दर्शन कर लेता है
जरा सोचिये यदि यहाँ से कोई करंट स्टेटस लिखे, तो क्या होगा ?


दफ्तरों में अक्सर यहाँ रौनक पाई जाती है
मीटिंग के बीच नया आईडिया भला कहाँ से सूझे
और हाँ जरुरी मिस्ड काल्स को भी देखना रहता है
कुछ बस चले आते हैं सजने-संवरने, विराम पाने


अभी खबर ये भी सुनी
देश के योजना भवन में लाखानी सौचालय बनाए गए
भाई ! क्यूँ ना हो, यहाँ से तो पुरे देश की योजनायें बनती है


हम तो बस यही कहेंगे
शौचालयों....., माफ़ कीजियेगा
सोचालयों की आपकी सोच जारी रहे:-)




Note: 
उपयुक्त कविता का विचार ब्लॉग मित्र श्री अमितजी के विचार से आया, शीर्षक और पूरी कविता उन्ही के विचारों का भाव लिए है.  गुस्ताखी माफ़!!!... उन्हें यहाँ पढ़ें...

9 comments:

M VERMA said...

लाखानी शौचालय का राज तो अब खुला ...
बहुत खूब

amit kumar srivastava said...

बहुत अच्छा लिखा है | आभार |

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत खूब,,,,, ,

MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत खूब....

ANULATA RAJ NAIR said...

अमित जी के विचारों को अच्छा तडका लगाया आपने...
:-)

br!nDle said...

loved the imagination...;)

Dr.NISHA MAHARANA said...

bahut khoob....

Jyoti Mishra said...

very witty :)
loved the concept !!!

Vishwa said...

Kya Soch Hai.....

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