कितने रंग बदलते हैं...
कमबख्त मौसम, माहोल,
सब फ़िज़ूल है इंसानी रंगों में...
अभी कुछ पल पहले ही जो
मुस्कुरा रहे थे
अब आग उगल रहे हैं
जोरो चिल्ला रहे हैं
की दूजे ही पल शांत

पलक झपकी नहीं की
की मन ही मन बडबडा रहे हैं
तारीफ कर भी दी किसी की कहीं
माहोल बदला, अपशब्द बरसा रहे हैं
कभी कोसे खुद को, कभी औरों को
बेचैन से हैं, थोड़े पगला रहे हैं
मजाकिया मिजाज़ कहा जाता है
पर हम तो मिजाजी बने जा रहे हैं
रहस्य गहरा है इन इंसानी रंगों का
सोचिये आप कितने रंग अपना रहे हैं
बड़े गिरगिटीया हैं हम...
*गिरगिटीया- Chameleon types...