THEMES

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Thursday, May 31, 2012

बड़े गिरगिटीया हैं हम...

बड़े गिरगिटीया हैं हम,
कितने रंग बदलते हैं... 
कमबख्त मौसम, माहोल,
सब फ़िज़ूल है इंसानी रंगों में... 

अभी कुछ पल पहले ही जो 
मुस्कुरा रहे थे 
अब आग उगल रहे हैं 
जोरो चिल्ला रहे हैं 



की दूजे ही पल शांत
ख्यालों में खोये से 
पलक झपकी नहीं की
की मन ही मन बडबडा रहे हैं 

तारीफ कर भी दी किसी की कहीं 
माहोल बदला, अपशब्द बरसा रहे हैं 
कभी कोसे खुद को, कभी औरों को  
बेचैन से हैं, थोड़े पगला रहे हैं 

मजाकिया मिजाज़ कहा जाता है 
पर हम तो मिजाजी बने जा रहे हैं 
रहस्य गहरा है इन इंसानी रंगों का 
सोचिये आप कितने रंग अपना रहे हैं 

बड़े गिरगिटीया हैं हम...

*गिरगिटीया- Chameleon types...

Saturday, May 19, 2012

चाहने से क्या होता है...















दिल चाहता है
पर चाहने से क्या होता है ?
अकेलापन कोई आदत नहीं होती 
पर हर मोड़ अकेला होता है...... 

हम कह भी दें की मौसम है आशिकाना 
पर भला कहने से, कहाँ होता है ?
ये इश्क एक बीमारी, हर कोई है रोगी 
इन रोगों का कहाँ इलाज़ होता है ?

कहीं हंसी है इसमें, तो कहीं नमी सी है 
कुछ कहते है फैसला, तकदीरों से होता है
 
दिल चाहता है
पर चाहने से क्या होता है...?




Wednesday, May 9, 2012

युवादृष्टि मासिक पत्रिका में प्रकाशित मेरी दो कविताएँ:-)

युवादृष्टि मासिक पत्रिका में प्रकाशित मेरी दो कविताएँ:-)




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