कुछ इस तरह से तुम ज़िन्दगी में छाई हो
मैं ठण्ड हूँ गर तो, तुम मेरी रजाई हो ...
कुछ इस तरह से...
मैं दूध का पतीला, पूरा भरा हूवा सा
तुम उसपे जमी हुई, गाढ़ी सी मलाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं बुझा हूवा सा जर्जरित सा लालटेन
तुम ही हो बाती, तुम ही दियासलाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं भोजनालयों का जला हुआ सा बर्तन
तुम उसपे जमी हुई, सख्त सी चिकनाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं समझा हूवा सा गंवार, नासमझ
तुम अनसुलझी गुत्थी, विकट कठिनाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं ठण्ड हूँ गर तो, तुम मेरी रजाई हो ...
कुछ इस तरह से...
मैं दूध का पतीला, पूरा भरा हूवा सा
तुम उसपे जमी हुई, गाढ़ी सी मलाई हो...
कुछ इस तरह से...
तुम ही हो बाती, तुम ही दियासलाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं भोजनालयों का जला हुआ सा बर्तन
तुम उसपे जमी हुई, सख्त सी चिकनाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं सरकारी दफ्तरों का पुराना सा टेबल
तुम फाइल वजनदार, कभी अंडर-टेबल कमाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं अनदेखा - अनपढ़ा सा फसबूकिया पेज
हजारों फोलोवर्स वाली तुम,सुपर एक्टिव प्रोफाइल हो...
कुछ इस तरह से...
मैं समझा हूवा सा गंवार, नासमझ
तुम अनसुलझी गुत्थी, विकट कठिनाई हो...
कुछ इस तरह से...
15 comments:
aree..awesome...
bartan n chikanai..too funny..
n last one does the trick :D
बहुत सुंदर,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
Khub j saras hasya kavita che.... bahuj saras....
Very nice.
lol maza aa gya :)
पूरी कविता का रस अंतिम पंक्तियों में सिमट आया|
:)
hehe...too good!!
achcha hasya hai......jari rakhiye......
सुन्दर कविता...मज़ा आ गया |
बहुत खूब !
बहुत ही बढ़िया हास्य कविता....
बहुत खूब जिक्र इस कठिनाई का
haha,, BHojanalaya,,being a Jain,, i had visited so many of them,, :)
beautiful
hehe ... बहुत खूब
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