कुछ इस तरह से तुम ज़िन्दगी में छाई हो
मैं ठण्ड हूँ गर तो, तुम मेरी रजाई हो ...
कुछ इस तरह से...
मैं दूध का पतीला, पूरा भरा हूवा सा
तुम उसपे जमी हुई, गाढ़ी सी मलाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं बुझा हूवा सा जर्जरित सा लालटेन
तुम ही हो बाती, तुम ही दियासलाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं भोजनालयों का जला हुआ सा बर्तन
तुम उसपे जमी हुई, सख्त सी चिकनाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं समझा हूवा सा गंवार, नासमझ
तुम अनसुलझी गुत्थी, विकट कठिनाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं ठण्ड हूँ गर तो, तुम मेरी रजाई हो ...
कुछ इस तरह से...
मैं दूध का पतीला, पूरा भरा हूवा सा
तुम उसपे जमी हुई, गाढ़ी सी मलाई हो...
कुछ इस तरह से...
तुम ही हो बाती, तुम ही दियासलाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं भोजनालयों का जला हुआ सा बर्तन
तुम उसपे जमी हुई, सख्त सी चिकनाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं सरकारी दफ्तरों का पुराना सा टेबल
तुम फाइल वजनदार, कभी अंडर-टेबल कमाई हो...
कुछ इस तरह से...
मैं अनदेखा - अनपढ़ा सा फसबूकिया पेज
हजारों फोलोवर्स वाली तुम,सुपर एक्टिव प्रोफाइल हो...
कुछ इस तरह से...
मैं समझा हूवा सा गंवार, नासमझ
तुम अनसुलझी गुत्थी, विकट कठिनाई हो...
कुछ इस तरह से...