
ठण्ड का प्रकोप कुछ इस तरह से बढ़ रहा
हर किसी का कमबख्त नाक है बह रहा
जुकाम ने धीरे- धीरे रफ़्तार बढाई है
अ आं....छी, आं....छी, करते सामत आई है
शुरू शुरू में बहता था बस
अब वन-वे ट्राफिक बंध हूवा
कफ का जमावड़ा सीनों में
बुलंद हूवा, प्रचंड हूवा

डॉक्टर बने लेकर खुद ही
बाजारी चंद दवाएं
कमबख्त हालत और बिगड़ी
गला भी अब बंध हूवा
की सांसें ले रहे मूह से
गाढ़ा पीला कफ बनता है
हर रोज किलो- दो किलो
प्रोडकशन निकलता है

पिये अदरकी चाय व् काढ़े
गला खोलने को न जाने
किये कितने गरारे
तभी किसी ने कहा
चादर ओढ़ भाप भी ले लो
हमने कहा भाई बस जिन्दा हैं
चाहो तो जान ही ले लो
रोजाना मानव ये बदतमीज़ बीमारी
झेल रहा, बस सह रहा
हर किसी को सर्द-जुकाम लगी है;
हर किसी का कमबख्त नाक है बह रहा....
A complete different theme suggested by : Ms.Meghna Bhatt
13 comments:
thanks..u have perfectly captured the sense..u made my weekend. :)
keep rocking
ha.ha..sahi kahaa sir..sabhi pareshan hain..
प्रकाश जी, लगता है आप सर्द-जुकाम से पीड़ित थे तभी तो इतने दिनों से हम लोगों से दूर थे,
सुंदर प्रस्तुती,आपकी रचना बहुत अच्छी लगी,..... .
MY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
अरे वाह सर्दी को भी नही छोडा कविता बना दी।बहुत अच्छा।
प्रकाश जी ये कविता भी बहूत खूब है ,
सर्दी से बहते नाक ,,सर्दी पर ऐसी कविता पहली बार देख रही हु...
पर ये अंदाज भी अच्छा लगा ..
haha, U wrote so unique, i never thought ki aise topic pe bhi koi likh sakta itne acche se..:P:)
भाई वाह ... सर्दी जुखाम का हास्य भजी लाजवाब रहा ... मज़ा आ गया पढ़ के ..
Lol.. Mast
आप के विचारो को सलाम करते हैं ................
sufferers.............. ;)
ha ha good one..enjoyed reading !!
hahaha.....sardi jukam se peedit ka dukh rochak tareeke se pesh kiya...:)
आप और आप की लेखनी का संग इस कविता में बहोत खूब जमा हैं !
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