मनुष्य हूँ, स्वार्थी हूँ मैं
उम्र गुज़री, अब भी मगर
थोडा नादान हूँ,
विध्यार्थी हूँ मैं......
कभी क्रोधी, कभी लोभी
कभी व्यसनी, कभी भोगी
थोडा आसक्त हूँ
क्षमानार्थी हूँ मैं
मनुष्य हूँ, स्वार्थी हूँ मैं...
साथी हूँ, कभी हमसफ़र
सब जान कर भी बेखबर
थोडा भटका हुआ,
शरणार्थी हूँ मैं
मनुष्य हूँ, स्वार्थी हूँ मैं...
जीवन एक परीक्षा
हर क्षण एक प्रस्नपत्र
ना तैयारी कोई मगर
परीक्षार्थी हूँ मैं
विध्यार्थी हूँ मैं......
मनुष्य हूँ, स्वार्थी हूँ मैं...