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Saturday, November 26, 2011

मजदूर का आत्म-चित्रण (Portrait of a Day Wage Earner)

इस कविता का विषय एवं विचार ब्लॉग मित्र ज्योति मिश्रा जी से मिला , और अगर ये भाव आपको पसंद आते हैं तो उसका पूरा श्रेय उनका भी होगा. 


कविता की शैली गुलज़ार साहब की एक नज्मों की किताब से प्रेरित है "पुखराज", जिसमे उन्होंने पोर्ट्रेट प्रस्तुत किये हैं , अब ये अलग सा विषय और विचार आपके सन्मुख प्रस्तुत है ....


दिनभर मेहनत करता हूँ 
रक्त-पसीना बहाता हूँ 
शाम हुए तो जीने को 
चंद रुपये ही बस पाता हूँ 

हर सुबह चुनौती रहती है 
एक काम नया पाने की 
किसी ठेकेदार के चुनने की
किसी सेठ के बुलाने की 

घर मेरा चलता फिरता 
बीवी और साथ में बच्चे हैं 
जिस जगह जहाँ भी काम मिला 
डेरा डाल रह लेते हैं 

दिन भर वे भी साथ मेरे 
मेहनत मजदूरी करते हैं 
तब जाकर शाम निकलती है 
रास्तों पर रात सो लेते हैं 

उन चंद रुपयों से बस 
उस दिन का गुज़ारा होता है 
आटा-चावल, तेल-तरकारी 
उस दिन ख़रीदे बनता है 

कभी-कभी जब काम नहीं 
बस पानी पीकर सो जाते हैं 
बच्चे भूखे रोते-चिल्लाते 
हम आंसू में रक्त बहाते हैं

ज़िन्दगी सपने मेरे भी है 
अक्सर देखा करता हूँ 
घर अपना हो, बच्चे पढ़ लें 
ऐसा सोचा करता हूँ 

फिर एक सुबह जब होती है 
डरा-डरा सा रहता हूँ 
आज भी काम मिलेगा मुझको
इस आस में जिंदा रहता हूँ......


Theme and Image Suggestion by: Ms.Jyoti Mishra

20 comments:

vandana gupta said...

्मजदूर की ज़िन्दगी की सच्चाई को बखूबी उकेरा है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दिहाडी के मजदूर की ज़िंदगी का सच उकेर दिया है ..सुन्दर प्रस्तुति

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

रोज़ की रोज़ीरोटी वाले मज़दूर की भावनाओं का सही शब्दांकन

Jyoti Mishra said...

awesome n very exact description of hardships n complexities of the life of a labour.

I've said it earlier n will say it again that I really liked the sheer simplicity u maintained throughout the post n used so simple words to explain a much complex character.

Fantastic read !!

अनुपमा पाठक said...

सटीक शब्द चित्र!

Mamta Bajpai said...

baht badiya badhai

Keyur said...

good one bhai........

संजय भास्‍कर said...

मजदूर की परिस्थिति और आज के सच को सामने रखते हुए एक बेहतरीन रचना है यह...

संजय भास्‍कर said...

सच्‍चाई बयां करती हर एक पंक्ति ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

केवल राम said...

कभी-कभी जब काम नहीं
बस पानी पीकर सो जाते हैं
बच्चे भूखे रोते-चिल्लाते
हम आंसू में रक्त बहाते हैं

बहुत शिद्दत से अपने मजदूर के मन की व्यथा को उकेरा है ......निराला की "वह तोडती पत्थर" कविता का दृश्य उभर आया .....!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Sach hai spne to mazdoor bhi dekhte hain.... Gahri Abhivykti...

kamaalnivato said...

Bahuj mast chhe....

palash said...

वो महल बनाता औरों के , और खुद के लिये पाता खुला आकाश
वो देता जीवन औरों को और उसके हिस्से आती भूख और प्यास
बेहरतीन कविता ...........

Anupama Tripathi said...

samvedansheel rachna ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मजदूरों के जीवन की दास्ताँ को बहुत सुंदरता
से पिरोया है,..
मेरे पोस्ट में आने के लिए आभार,..स्नेह बनाए रखे,..

Mini said...

hum b toh inki tarah hi hai...... sahi hai ek dum heart touching........

V G 'SHAAD' said...

expressed deeply a thinking of young one who need to do something and ready to take responsibilities of life. Well done.

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 04/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Rajesh Kumari said...

बहुत मार्मिक चित्रण किया है एक मजदूर ,गरीब के जीवन का आपकी कविता ने

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 02/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

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