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Friday, November 18, 2011

'अकेला पंछी'

'अकेला पंछी'
वक़्त की आँधियों में,
तूफानों में,
बिछुड़ चूका है, 
अपने साथियों से
अपनी जमीं से, 
आसमां से 

एक वक्त था
बड़ा चहका करता था 
अपनी दुनिया में
शायद घमंड भी था उसे 
अपने साथियों के होने का 
हर वक्त बस उड़ना चाहता था 
पंख फडफड़ाते- लहराते रहता था 
नयी दिशाओं में, 
उनके साथ

उन आंधी-तूफानों में 
क्या-क्या नहीं खोया उसने 
अब दूर पहुँच चूका है 
एक नयी जमीं में 
नए आसमां में  
दुनिया बदली-बदली सी है 
लोग कुछ अलग से है

बेहद अकेला महसूस करता है खुद को 
तन्हा, बेचैन 
कमबख्त, कोसता है उन तूफानों को 
जिन्होंने ज़िन्दगी यूँ की 

खुद को नए माहोल में,
नई हवाओं में,
ढालने का प्रयास करता 
सोचता है 
काश! कि वो प्रलय से तूफ़ान ना आते ?
काश! सबकुछ सकुशल होता ?

21 comments:

Keyur said...

After reading this the only thing i can say is ............."PLEASE COME BACK"........

रश्मि प्रभा... said...

tanha bechain si zindagi ... akelepan ka dard bakhoobi utaara hai

प्रेम सरोवर said...

बहुत बढ़िया....कुछ ऐसा जो आमतौर पर पढ़ने नहीं मिला करता..। मेरे पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं ।.बधाई ।

विभूति" said...

अकेला पंछी'
वक़्त की आँधियों में,
तूफानों में,
बिछुड़ चूका है,
अपने साथियों से
अपनी जमीं से,
आसमां से

एक वक्त था
बड़ा चहका करता था.... बहुत ही खुबसूरत.....और मार्मिक.....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर पोस्ट,अच्छी कोशिश जारी रखे,मेरी शुभकामनाए ...

मनोज कुमार said...

सब कुशल ही होगा।
जो तूफ़ान से टकराने का माद्दा रखता है, उसे पार लगना ही है।

संजय भास्‍कर said...

अपने रचना क़े द्वारा बहुत कुछ कह दिया
बेहतरीन प्रस्तुति
धन्यवाद

केवल राम said...

क्या कहें आपकी इस प्रस्तुति पर ......!

अनुपमा पाठक said...

अब भी सब कुशल ही होगा... पंछी नए माहौल से परिचय तो बढ़ाये!

Nidhi Shendurnikar said...

this not the story of a bird ..this is the story of mankind ..of life

दिगम्बर नासवा said...

पंची अपने आप को माहोल अनुसार ढाल लेंगे ... अगर इंसान होता तो बात कुछ और होती ... अच्छी रचना है ..

Jyoti Mishra said...

very very beautiful.. the way u narrated wooo it was like visible in front of eyes.

Great writing Prakash !!

Mamta Bajpai said...

जीवन मैं संताप घनेरे
घुप छाँव सुख दुःख के डेरे
पल छिन आती जाती यादे
गुजरे हुए पलों के घेरे
संचित मन मैं स्मृतियों को
कैसे हम मन से विसराए
और तुम्हें हम क्या बतलायें \


अच्छा लिख लेते हो ...बधाई

कुमार संतोष said...

सुंदर रचना...
बहुत बहुत बधाई...!

Yashwant R. B. Mathur said...

यह सिर्फ पंछी का मन ही नहीं हम सब का मन है और मन के अकेले पन और कसक को बखूबी शब्द दिये हैं।

सादर

Jeevan Pushp said...

ज़िन्दगी की कसक ...!
बेहद सुन्दर ...!

सदा said...

वाह ...बहुत बढि़या।

मेरा मन पंछी सा said...

wahh,,,
bahut hi behtarin rachana hai...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

वाह!! बढ़िया रचना.
सादर

ILA PANDYA said...

HEY DEAR ........
EK PANCHI KO PANKH MILE HAI....
UNCHE UDANE KI CHAH BHI MILI HAI....
USE PANCHI HI HONA HAI TO '*prakash* KI OR HI UDAAN BHARNI HOGI...................
VARNA,VO APNI PAHECHAAN HI KHO DEGA....!!!!
APNAA ATMA-VISHVAAS BHI KHO DEGA....:-((

TONS OF LV N BLESSINGZ...CHANGE IS ALWAYZ TRUMATIC,MY DEAR..!!I EMPATHIZE WID D BIRD..!!!

Monika Jain said...

काश ! :)

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