विवाद सभी कर सकते हैं, पर वार्तालाप कुछ ही जानें
श्रोता बनना कठिन बड़ा, ये निरंतर बोलने वाले क्या जाने ?
क्रोध सभी करते रहते, विनम्रता कुछ ही जाने
हो-हल्ला जिनको हो प्यारा, वो शांति-रस को क्या जाने ?
निंदा-उपहास सभी कर लेते, पर प्रशंसा करना कम जाने
मेहनत जिसने कि न हो कभी, संघर्ष है क्या, ये क्या जानें ?
स्वार्थ जिसे हो प्यारा, वो व्यवहार नहीं जाने
हिंसा मार्ग पे चलने वाले, क्षमा इक गुण ये क्या जाने ?
नशे में डूबे रहते हैं, वे दिन या रात नहीं जानें
11 comments:
बहुत खूब सर!
सादर
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ..।
वाह बहुत खरी खरी कही है मगर सच कही है।
wow ... extremely good ...have no words for it ...great creation because it has depth and meaning it it ...loved it
बहुत खूब ... प्रकाश जी खूब लिखते हैं आप ... लाजवाब शेर हैं सबी ...
सुनने में कौन वक़्त गंवाए , जब यह गुमां हो कि मैं सब जानता हूँ .... और बस बोलते जाओ
सटीक बात ... खुद को हरफनमौला समझने वाले कुछ समझना नहीं चाहते .. अच्छी प्रस्तुति
बिलकुल सही फरमाया है आपने. सुंदर रचना.
lovely words...nicely crafted lines!
लाज़वाब...
गहरी बात लिए सभी पंक्तियाँ......
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