सच,
आज कितना,
झूठा हो गया है
स्वार्थ के बहानों में
गिरे हुवे से ईमानों में
प्रतियोगिता के नशे में
हर दफ्तर में
हर ठिकानों में
ढोंगी से रवैयों में
समझे-जाने हुए,
अनजानों में
उन बेशरम से
रहीशों से
उन्हीके
घमंडी अरमानों में
दर्द छुपा बस रह जाता
गरीब-निर्धन के
मकानों में
सच,
आज कितना,
झूठा हो गया है
स्वार्थ के बहानों में....