मन भभक उठता है
वक़्त कि सख्ती पर,
क्रूरता पर
उन क्षणों में,
जब हम बेबस और लाचार होते हैं केवल
दर्द- तकलीफों को देखना, बस
तब जब आप जानते हैं परिणाम क्या होगा
उन लम्हों पर
जब ज़िन्दगी से ज़िन्दगी कि लड़ाई होती है
वो वक़्त कि जब
फैसले लेने पड़ते हैं, अनचाहे, अकेले
टूटे हुवे हौसलों पर
उम्मीदों पर
आंसुओं को रोकते हुए
उस बेतुकी सी आस्था पर,
उन ढोंगी रवैयों पर
और इन सबसे ज्यादा,
जिंदगी के सूनेपन पर, आज
गुस्सा आता है
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