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Wednesday, July 27, 2011

बूँदें...

बूँदें 
कभी बौछार बन के 
मंद हवा में लहलहाती हुई
टेढ़ी-मेढ़ी, नुकीली सी, चुभती भी हैं 
किसी को छत पर तो, किसी को छत में
जाने को मजबूर करती हैं 
मिटटी कि भीनी खुशबू
पंछियों का मधुर कलरव 
रास्तों पर थोड़े-थोड़े पानी में छपछपाते बच्चे  
किनारे पर टहलते वृद्ध दम्पति 
एक नयी उमंग है सबमे सावन के आने कि
उधर दूर कहीं अंगड़ाई लेता यौवन 
बूंदों के आलिंगन से पुलकित होता हुआ 
झूमता हुआ,  
सब कुछ कितना खुशनुमा है, रोमांचित है 

पर इन्ही बूंदों का तांडव बड़ा भयानक होता है 
मुशलाधार बन कर जब ये बरसती हैं 
कितना विरोधाभासी अनुभव है 
हर तरफ पानी, जल-प्रलय 
डूबते हुवे घर-सामान
और उनमे बहते व् टूटते सपने 
बर्षों का परिश्रम पल में विलीन हो जाता है 
उपलब्ध ऊँचाइयों पर रोते बच्चे, 
दर्द से कराह रहे वृद्ध 
फसल उजडती देखता किसान 
हर किसी ने कुछ-ना-कुछ खोया है 

कुदरत के सौंदर्य जितना रसपूर्ण है 
उसका प्रकोप उतना ही नीरस व् गमगीन है

Theme By: Ms.Vishwa

9 comments:

Vishwa said...

really fantastic....

kamaalnivato said...

Bau j jordar chhe.....vistrut nirupan kudarat nu adbhut chhe....

ila pandya said...

AGAR IS KO DHYAAN SE PADHAA JAYE TO 'SHRADDHA' AUR 'AASHAAE' ISIME NIHIT HAI.PURNA JIVAN KA KHUBSURAT AALEKHAN KIYA HAI....PRAKASH, LV N BLESSINGZ.............................ILA

Anonymous said...

बूँदों की भाषा बूंदे ही समझती हैं,

बूँदों से सागर है भरता, बूँदों से गागर है भरता ,
बूँदों की महिमा तो देखो, अश्रु बन कर बूँद ही बहता ,
क्या कसूर इन बूँदो का है, बहना इनका काम,
सुख में दुख में बह आते हैं, रह जाते बदनाम,

Anonymous said...

good one

pratiksha said...

Saras che

ranjana said...

Nice...:)

Unknown said...

This one is also very well written Prakash Ji..
Deep feelings...
Congrats ! I will come again and again...

संजय भास्‍कर said...

truly brilliant..
keep writing.......all the best

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