ख्यालों के जंगल
कितने घनें और विशाल हैं ये
हर तरफ ऊँचाइयों को चुमते
कुछ नाटे-चौड़े से
तो कुछ पौधों से नव-पुलकित
कुछ लताओं से लिपटे हुए, दूर तक
उलझे हुए हरतरफ
जिनका अंत ढूँढना कठिन है
कहीं इतने भयानक हैं कि डर लगने लगता है
आवाजें सुनाई देती हैं मन की
आवाजें सुनाई देती हैं मन की
कि इन में खोनें पर
खुद को भी ढूंढ पाना मुश्किल है
ये हैं
ख्यालों के जंगल
7 comments:
its very true prakahs.....
अच्छा ख्याल है ........ ज़िन्दगी कट जाती हैं इन्ही ख्यालो मैं..........
jangal me aap jese jindadil rehte he....
वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
.....प्रशंसनीय रचना - बधाई
BEAUTIFUL....AS ...ALWAYZ....!!!
BE AWARE...u r P R A K S H....****!!
ur task is 2 give light 2 others....:-))
mpower urself .....2 nlighten others....!!!
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वाह प्रकाश जी.. क्या ख्याल रखते हैं आप ख्यालों के जानिब.. बहुत सुन्दर रचना... बधाई...
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