लफ्ज़ कागज पे जो बिठाये हैं
बड़ी ही मुश्किल से बैठ पाएं हैं
पहले उलझे रहे ये दिल में
और फिर ख्यालों में छटपटायें हैं
ना जाने की कितनी मसक्कत
व काटा- पिटी
फिर कहीं कलम से दिशा पाए हैं
सोते, जागते, हँसते, गाते व् बोलते
तो कभी खामोश ये
तनहाइयों में एकतरफा झुंझलायें हैं
खुले कागज़ से बंध डायरी तक
तो कभी कंप्यूटर पे बने चिठ्ठों (ब्लॉग) तक
कभी तुमने पढ़े
तो कभी हमने दोहराए हैं
लफ्ज़ कागज पे जो बिठाये हैं
6 comments:
really...lafz kagaz pe bitha diye....
'SHABDO NE PAKDVA,RAMADVA ANE GOTHAVAVAA, ETLE TEMAA KHOVAI JAVU....!!!
AANAATHI KOI ALAG DHYAAN NI AVASTHA HOI SHAKE ???
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A D B H O O T!!!
A B H I N A N D A N !!
A S H I S H!!
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
सही कहा भास्कर साहब ने...
बहुत ही उम्दा रचना है... बधाई प्रकाश जी ...
Prakash ....this is one of your excellent creation....small but amazing....really....one of my favorite...Really..
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