ख्यालों के जंगल
कितने घनें और विशाल हैं ये
हर तरफ ऊँचाइयों को चुमते
कुछ नाटे-चौड़े से
तो कुछ पौधों से नव-पुलकित
कुछ लताओं से लिपटे हुए, दूर तक
उलझे हुए हरतरफ
जिनका अंत ढूँढना कठिन है
कहीं इतने भयानक हैं कि डर लगने लगता है
आवाजें सुनाई देती हैं मन की
आवाजें सुनाई देती हैं मन की
कि इन में खोनें पर
खुद को भी ढूंढ पाना मुश्किल है
ये हैं
ख्यालों के जंगल