THEMES
Tuesday, May 18, 2010
जब वो कहीं ...
जब वो कहीं निश्चिंत सो रहे होंगे
हम यहाँ उन्ही के सपनो में खो रहे होंगे
उन्होंने करवटें बदली होंगी
दृश्य हमारे यहाँ बदल रहे होंगे
कि कसकर तकिये को गले लगाया होगा
हमने यहाँ उनका आलिंगन पाया होगा
चद्दर को खींचकर बदन पे फैलाया होगा
हमने खुद को उनके और भी करीब पाया होगा
सिकुड़कर धीरे से एक आह कि होगी
हमने हर सांस यहाँ उनपर फ़ना कि होगी
पुरा कमरा उनके तेज से चमक रहा होगा
मायूस दिल मेरा अंधेरों में धड़क रहा होगा
कि बिस्तर अपने नसीब पर इतरा रहा होगा
घर का हर एक कोना हमें खा रहा होगा
महक उनकी ले फिजा खिल रही होगी
यहाँ अरमानों कि आंधियाँ चल रही होगी
कि रातें उनकी भी कभी तो तनहा होगी
हमारी तो बस यही तमन्ना होगी
कि सपने कभी उनके भी होंगे हमारे जैसे
'प्रकाश' क्या खूब वो सुहानी रात होगी ?
-
प्रकाश जैन
१५.७.१०
Saturday, May 8, 2010
अलग है अलग...
इंसा एक पर स्वभाव है अलग
सभी का अपना प्रभाव है अलग
नदी का हर जगह बहाव है अलग
कविता में पंक्तियों का भाव है अलग
पत्नी और प्रेमिका का प्यार है अलग
हर बच्चे से माँ-बाप का प्यार है अलग
वेश है अलग, परिवेश है अलग
सभी में छुपा, राग-द्वेष है अलग
दृष्टि है अलग, दृष्टीकोण है अलग
समस्याओं का सभी पे षटकोण है अलग
इश्वर जहाँ का एक, पर धर्म है अलग
पंथ है अलग, मर्म-कर्म है अलग
मंजिल है अलग, है रास्ते अलग
दिल एक से, पर धडकनें अलग
प्रारंभ है अलग, है अंत है अलग
सभी का अपना प्रभाव है अलग
नदी का हर जगह बहाव है अलग
कविता में पंक्तियों का भाव है अलग
पत्नी और प्रेमिका का प्यार है अलग
हर बच्चे से माँ-बाप का प्यार है अलग
वेश है अलग, परिवेश है अलग
सभी में छुपा, राग-द्वेष है अलग
दृष्टि है अलग, दृष्टीकोण है अलग
समस्याओं का सभी पे षटकोण है अलग
इश्वर जहाँ का एक, पर धर्म है अलग
पंथ है अलग, मर्म-कर्म है अलग
मंजिल है अलग, है रास्ते अलग
दिल एक से, पर धडकनें अलग
प्रारंभ है अलग, है अंत है अलग
संसार का हर कोना-कोना, जीवंत है अलग
Thursday, May 6, 2010
जलते-जलते....
यूँही चले जाओगे कभी, चलते-चलते;
क्यूँ रहते हो सदा इसतरह, जलते-जलते
हर पल में खींचातानी,बेईमानी,धोखाधड़ी;
क्या इसी रास्ते ही हो तुम, फूलते-फलते ?
सिर्फ धन-सम्पति से कुछ नहीं हासिल होना;
सुख ख़रीदा नहीं जा सकता, रकम से
कोषते ही रहते हो नसीब को हरदम;
जीते जा रहे हो मगर, मरते-मरते
मानते हो दुःख तुम पर ही है केवल
नज़रों को झुकाओ किसी कोने-रस्ते
'प्रकाश' आता ही है हर अँधेरे के बाद;
क्यूँ बहक जाते ही, बढ़ते-बढ़ते
-
प्रकाश जैन
४.५.१०
क्यूँ रहते हो सदा इसतरह, जलते-जलते
हर पल में खींचातानी,बेईमानी,धोखाधड़ी;
क्या इसी रास्ते ही हो तुम, फूलते-फलते ?
सिर्फ धन-सम्पति से कुछ नहीं हासिल होना;
सुख ख़रीदा नहीं जा सकता, रकम से
कोषते ही रहते हो नसीब को हरदम;
जीते जा रहे हो मगर, मरते-मरते
मानते हो दुःख तुम पर ही है केवल
नज़रों को झुकाओ किसी कोने-रस्ते
'प्रकाश' आता ही है हर अँधेरे के बाद;
क्यूँ बहक जाते ही, बढ़ते-बढ़ते
-
प्रकाश जैन
४.५.१०
Saturday, May 1, 2010
संत-बाबा अलग है...
हर गाँव, हर शहर, संत-बाबा अलग है,
सफ़ेद-गेरू-काला , पहनावा अलग है
सभी का लक्ष्य प्रभु के करीब पहुँचाना
जुलूस-प्रदर्शन ढोंग-दिखावा अलग है
दुकानें अलग है, ग्राहक अलग है
अलग चेला-मंडली, व् चाहक अलग है
सभी की अपनी गुरु वाणी अलग है
सुबह संत-योगी, रात भोगी अलग है
प्रभु अलग है, नाम-ब्राण्ड अलग है
कथाएँ अलग है व् काण्ड अलग है
मंदिर-आश्रम-गाडी व् मकान अलग है
सियासत में सबके कदरदान अलग है
दान मांगने के सभी के आह्वान अलग है
प्रचार माध्यमो से बनी पहचान अलग है
न कर है इनपर, न सम्पति के पैमाने
काला से सफ़ेद धन बनाने के बहाने अलग है
हर गाँव, हर शहर, संत-बाबा अलग है...