जीवन आज आतिशबाजी सा होता जा रहा,
चमक रहा, भड़क रहा, ओझिल होता जा रहा
रिश्तों में मिठास लुप्त हो चुकी कहीं,
हर कोई अपने ही स्वार्थ को सुलझा रहा
व्यापार में ईमानदारी नहीं देखने मिलती,
प्रतियोगिता कर हर कोई प्रतिद्वंदता बढा रहा
राजनीती खेल कुर्सी का, पार्टियाँ सहारा,
मिल-जुलकर नेता देश को खोखला बना रहा
भ्रष्टाचार व्यापक हुआ है आज हर तरफ,
'चोर-चोर मौसेरा भाई', एक दूजे को निभा रहा
समाज बना सुशिक्षित और समझदार पहले से बहुत,
पर कुछ निक्कमों कि वजह से बदनाम होता जा रहा
शांति के चाहक सभी करते भाईचारे कि बातें,
फिर भी हिंसा-आतंक को कौन रोक पा रहा?
इंसानियत दिखाने को करने पड़ रहे प्रदर्शन
मनुष्य क्यूँ आज इतना क्रूर होता जा रहा ?
जीवन आज आतिशबाजी सा होता जा रहा...
जीवन आज आतिशबाजी सा होता जा रहा...
-
प्रकाश जैन
४.३.१०
6 comments:
aapne bahut achha likha hai...aapki rachna achhi hai
are wah...!!! Its really very true.
good one...
Awesome one...................salute to u........
wow..prakash kya bat hai.../
Gud 1 Bro......
bahut badhiya....
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