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Friday, December 4, 2009

यार, वो भी क्या दिन हुआ करते थे !!!














यार, वो भी क्या दिन हुआ करते थे 
जब हम साथ जिया करते थे 
क्लासरूम हो, लोबी हो, या हो पार्किंग 
हम हर जगह कुछ नया ही किया करते थे 
यार, वो भी... 
 
एक दूजे की बड़ाई, दूजे ही पल खिंचाई
तो कभी-कभी थोडी सी कर लेते थे लडाई 
हमारे याराने को देखकर दूसरे  

अक्सर जला करते थे
यार, वो भी...

क्लास छोड़ फिल्मों मे जाया करते थे 
घर मे देर होने पर, 
एक्स्ट्रा लेक्चर कारण बताया करते थे
कितनी आसानी से घरवालों को 
हम उल्लू बनाया करते थे 
यार, वो भी...

वो साथ बैठ कर घंटों बातें
गाया - बजाया करते थे 
कभी ओरिजिनल, तो कभी तोड़ मरोड़ 
गानो को गाया करते थे
वो नौटंकी, वो शरारतें  
सब खुश हो जाया करते थे 
यार, वो भी...

वो टिफीन पर एक-दूजे का इंतज़ार 
वो कोंट्री वाली पार्टियाँ, चायवाले का उधार 
हॉस्टल में फीस्ट खाने में 
शर्तें लगाया करते थे 
यार, वो भी..

वो एक्जाम्स से ठीक पहले, 
रीडिंग मटेरिअल ढूँढा करते थे 
लाइब्रेरी मे बैठ कर नोट्स बनाया करते थे 
सिर्फ एक दिन की पढाई मे 
पूरा पेपर लिख आया करते थे 


यार, वो भी क्या दिन हुआ करते थे 

3 comments:

Unknown said...

प्रकाश जी ये तो बेहतरीन रचना है आपकी

वाह कितनी आत्मियत के साथ
आपने यह रचा है..
मेरी भी यही कहानी,
लगता है सब आपने ही कह दिया
मेरे लिए क्या बचा है !

बस एक बात.... अंतिम लाइन में "लिख दिया करते थे" की जगह "लिख आया करते थे" होता तो तुकबंदी भी बनती और मजा भी आता.. ये मेरी राय मेरा स्वार्थ...

Prakash Jain said...

@ Anilji: Aapke sujhav ke anuroop badlav kar diya hai, dhanyavaad

Monika Jain said...

nostalgic... good one

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