क्या हमारी आकांक्षाएं थमी है कभी ?
क्या हमारी खोपडी भरी है कभी ?
हर तरफ झूठ का छाया है कोहरा,
क्या हमने सत्य को आजमाया है कभी ?
अपने सुख के पीछे भागते फिरते हैं,
क्या किसी अनजाने को हंसाया है कभी ?
कितने ही दोस्त बने इस दुनिया में
क्या हमने दोस्ती को निभाया है कभी ?
कटु वचनों का निशदिन कर रहे प्रयोग,
क्या मीठे बोलो ने रुलाया था कभी ?
उजाड़ते जा रहे प्रकृति को हर तरफ,
क्या एक पौधा भी हमने लगाया है कभी ?
चिंतित है सोच कर पूरी दुनिया कि समस्यायें,
पर क्या एक को भी हमने सुलझाया है कभी ?
2 comments:
true...khud hi zimmedari uthana chahiye...dusro par thopne se kuch nai hoga....!!!
Nice
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