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Thursday, September 10, 2009

जीवन हर क्षण...


जीवन हर क्षण क्यूँ इतनी परीक्षाएं?
व्यर्थ ही क्यूँ देनी पड़ती इतनी समीक्षाएं?
लाख कोशिशों के बावजूद,
क्यं कभी-कभी ही मिलती सफलताएं ?
सीख और ज्ञान बाँट रहा है हर कोई,
पर क्या जरुरी है उसे हम अपनाएं ?
जानते व् मानते हैं खुद को चतुर
पर क्यूँ न समझे कोई हमारी विशेषताएं ?
लोगों में प्रसन्न रहना तो है एक दिखावा
गम छुपा है कितना , क्या बोलें - क्या बतलाएं ?
तजुर्बे-जिंदगी-गम झेलकर हुआ है ऐसा
कि सोचतें हैं चलो फिर से आजमायें

जीवन हर क्षण क्यूँ इतनी परीक्षाएं?

व्यर्थ ही क्यूँ देनी पड़ती इतनी समीक्षाएं?

Tuesday, September 1, 2009

क्या हमारी आकांक्षाएं थमी है कभी ?

क्या हमारी आकांक्षाएं थमी है कभी ?
क्या हमारी खोपडी भरी है कभी ?
हर तरफ झूठ का छाया है कोहरा,
क्या हमने सत्य को आजमाया है कभी ?
अपने सुख के पीछे भागते फिरते हैं,
क्या किसी अनजाने को हंसाया है कभी ?
कितने ही दोस्त बने इस दुनिया में
क्या हमने दोस्ती को निभाया है कभी ?
कटु वचनों का निशदिन कर रहे प्रयोग,
क्या मीठे बोलो ने रुलाया था कभी ?
उजाड़ते जा रहे प्रकृति को हर तरफ,
क्या एक पौधा भी हमने लगाया है कभी ?
चिंतित है सोच कर पूरी दुनिया कि समस्यायें,
पर क्या एक को भी हमने सुलझाया है कभी ?
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