क्यूँ बढ़ रहा है ये आतंकवाद?
ये कैसा हो-हल्ला ये कैसा संवाद
सिर्फ बम-गोली का हो रहा है नाद
क्यूँ बढ़ ………………..............?
हमारी आज़ादी पर क्यूँ मर रही रोज़ यूँ लात
सरे आम छुटती गोलियाँ, बन रहा नया रिवाज़
क्यूँ बढ़ ……………………….?
हर बार मर रहे बच्चे , बूढे और जाँबाज़,
फिर भी न जागते हम, न आती है लाज
क्यूँ बढ़ ……………………….?
हमारे कुछ अपने भी दे रहे जुर्म का साजचंद पैसों की चाह में ,
जिहाद के बह्कावे में ,भुलाते देश-समाज
क्यूँ बढ़ ……………………….?
उधर देश चल रहा बूढे भ्रष्ट व अनपढ़ नेताओं के कंधो पर
जिन कंधो की जिम्मेदारी न जाने कितने कंधो पर
घटना के बाद इस्तीफे क्या यही है आतंकवादियों का इलाज़,
क्यूँ बढ़ ……………………….?
कुर्सी के लोभी वोटों के भिखारियों को पहनाते हम ताज,
अपने कार्य के लिए देते रीश्वत, कहते भ्रष्ट समाज
देशद्रोहियों को देते शरण, न उठाते आवाज़
फिर कहते हैं बढ़ रहा आतंकवाद
अब भी वक़्त है , जागो आप तो जागेगा समाज,
आइये उठायें आतंकवाद और भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ आवाज
प्रकाश जैनली:
३०.११.०८
1 comments:
Hey Bro ur poetry r realy gud.. Keep going dear!!!
Post a Comment
Your comments/remarks and suggestions are Welcome...
Thanks for the visit :-)