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Friday, June 19, 2009

चलता जा तू संभल-संभल कर.........

पल पल हरपल जीवन इक हलचल,
चलता जा तू संभल-संभल कर.........

मन हर्षित कुछ पल , बेचैनी निश्चल
हर तरफ कोलाहल, हर मन में छल
चलता जा तू .........

सपने अरमानों के भंवर में
तू अपना लक्ष्य चयन कर
कठिन रास्ते, तकलीफों को सहकर
आगे बढ़ता जा तू डटकर
चलता जा तू .........

संयम, सत्य को अपना कर
तू निशदिन आगे बढ़ चल

दृढ निष्ठा, सच्ची सोच के बलपर
दुःख मुश्किलें सब जायेगी टल
चलता जा तू .........

काँटों में रह, फूलों सा खिलकर
महका ले हर पल को हँसकर
जीवन एक महफिल है प्यारे
जीले इसको तू जमकर
चलता जा तू संभल-संभल कर.........

-प्रकाश जैन
लि: ०५.०४.२००९

6 comments:

Unknown said...

bahut khoob

BADHAI !

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

स्वागत है। अच्छी सँभाली हुई रचना। इस तरह दो ढाई महीने न रखें, पोस्ट कर डालें।

शशांक शुक्ला said...

बहुत अच्छी रचना है आपकी

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

well.narayan narayan

राजेंद्र माहेश्वरी said...

बहुत अच्छी रचना है आपकी

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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