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Saturday, October 28, 2023

जाने लगूँ तो आ जाना

 



कि ज़िन्दगी गुजरी हो 

चाहे ऐसे -वैसे ही 

दिखाने मौत पर अमीरी हमारी 

आ जाना 

जाने लगूँ तो आ जाना 


हँसाया हो, रुलाया हो 

खरी - खरी सुना दी हो 

कोई सलाह दे दी हो 

कभी किसी काम आयें हो 

कि असर रहा हो हमारा भी 

तुम पे थोड़ा सा 

एहसास कराने 

आ जाना 

जाने लगूँ तो आ जाना 


वो जो बातें अधूरी सी रही 

वो जो मिलना ना हो पाया 

वो जन्मदिन, वो सालगिरह, ये दिन, वो दिन 

वो सपने, वो प्लान, लेकिन - वेकिन 

बाकी वो सारा कुछ जताने 

आ जाना 

जाने लगूँ तो आ जाना 


दर्द समेटे रखना, 

चिड़चिड़ाना, छटपटाना 

दिखावटी सा अक्सर वो 

कम्बख्त मुस्कुराना 

रंग हमारे भी थे थोड़े कुछ मगर  

औरों को बताने 

आ जाना 

जाने लगूँ तो आ जाना 








Sunday, April 18, 2021

निजीकरण श्मशानों का

 






















निजीकरण श्मशानों का  
क्यों नहीं हुवा अब तलक ? 
इस बारे में क्या किसी को 
सूझा ही नहीं ?


वो जो आजीवन सहूलियत में पला 
ब्रांड खाया-पहना, ब्रांड में ही चला 
सरकारी श्मशानों में साधारण जले 
शीघ्र दाह का क्रम पाने परिवार पहचान ढूंढे 
ये भी कोई बात हुई


हाई क्लास श्मशान बनें 
अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित 
चारों तरफ हरियाली, फंवारे 
मल्टी स्टोरी पार्किंग, रेस्ट रूम 
नाश्ता, चाय पानी की व्यवस्था 
वेद मंत्र आदि का उच्चारण हो  
दिव्य वातावरण बने 


विविध विकल्प उपलब्ध हो,
अंतिम क्रिया के पसंद करने को 
पैकेज सिल्वर,  गोल्ड,प्लैटिनम आदि 
गाय का शुद्ध घी, गोबर, श्मशान की गौशाला से 
लकड़िया हर तरह की,
पुष्प नाना प्रकार के,  
इलेक्ट्रॉनिक चिता का विकल्प तो होगा ही
पर्यावरण, समय की भी 
समझ-कीमत होगी किसी को  


कुशल कर्मचारी प्रबंधन करें, 
हर कार्य- विधि का 
मार्गदर्शन हो अंतिम-क्रिया विशेषज्ञ ब्राह्मण का 
चिता सजे श्रेष्ठ आयोजन से 
परिजन बस दाह दें और  
वातानुकूलित कक्ष में इत्मीनान से बैठे 
देखें सीधा प्रसारण स्क्रीन पर 
स्वजन के अंत से अनंत के प्रयाण का 
मृत्यु के बाद की शोभा का, शान का 


अस्थियाँ लेने-पहुँचाने से विसर्जन तक
बारहवीं, तेरवी, उठावने का प्रबंधन  
वीडियो रिकॉर्डिंग, फोटो, अख़बारों में सूचन 
सुविधाएं उपलब्ध हो जैसी चाहे परिजन 


अस्पतालों का सीधा अनुबंध हो, 
लैब की तरह श्मशानों से भी 
मुफ्त रजिस्ट्रेशन करें, चिता बुक करें
एक पाठ्यक्रम चलाया जाये 
अंतिम-क्रिया प्रबंधन पर 
रोज़गार का नया एक क्षेत्र काबिज़ हो 
 

कि भार इससे कुछ तो काम होगा 
सरकारी श्मशानों का 
गरीब मृत्यु पर तो कम से कम 
कतारों में न झुलसे ..  

Saturday, August 8, 2020

ख्वाब...




ख्वाब 


रक्खे थे दुछत्तीयों पे, 
अलमारियों में, अटाले जैसे  
कुछ टूटे 
कुछ बिखरे 
कुछ को जालों ने, 
जमी धूल ने 
सहेजे रक्खा है अबतक 
हर रात चमकते हैं जुगनू की तरह 

वो कुछ एक जो देखे थे 
जागते भीड़ में, कोलाहल में 
लापरवाह से भटकते रहते है 
रास्तों की तलाश में 
कोई मोड़ ऐसा हो 
नया मोड़ दे दे, 
जिंदगी को  

कुछ तो
बस छूट ही गये कहीं 
ना जाने किस गली, किस मोहल्ले 
कोई अनजाना मिला 
और खो गया जैसे 

काश कोई पेशा होता 
इन्हे देखने का भी 
कमाई खूब होती अपनी 
अक्सर सोचता हूँ 

कुछ एक-आध ही सही 
सच भी होते कभी 
तो तसल्ली होती 
वरन फ़िज़ूल ही तो है 
इन्हे देखना, जूझना, जीना 
और फिर बस... 
भूला देना 

अभी इन दिनों 
'प्रेमालय' बनाने की सोची है 
मुकाम हो कहीं एक इनका भी 
लिख दिया है
कि सुना है कई बार 
लिख देने से मुक़ामाल हो जाता है 

Saturday, June 22, 2019

जब कोई हाल पूछता है
















इन दिनों जब कोई 
हाल पूछता है, 
चुभता है, क्यों ये 
सवाल पूछता है 

झूठ ही कह भी दो,
कुशलता चाहे 
लगता है मानो, 
'क्यों है' पूछता है 

ऑनलाइन हर कोई
खुशहाल ही दिखा, 
झाँका ज़िन्दगी में 
हर शख्स झुझता है 

मैं मेरे 'मैं' में रहूँ, 
तुम अपने 'मैं' में रहो, 
बुलबुला 'हम' का 
उछलता है, फूटता है

राय से पेट भरता अगर, 
लंगर ही लगवा देते
बिन मांगे बँट रही, 
कौन पूछता है  

अपनत्व का विज्ञापन 
आकर्षित कर सकता है, 
जाले नजरों में हो
कम सूझता है

इन दिनों जब कोई
हाल पूछता है
चुभता है, क्यों ये 
सवाल पूछता है 

Tuesday, March 7, 2017

तेरा होना ही एक उत्सव है, तू है तो हर दिन त्यौहार है

ये कविता केवल महिलाओं के लिए, उन्ही को समर्पित।  

मानव संसाधन (Human Resources( में कार्यरत एक दोस्त ने 'महिला दिवस' पर अपने साथ कार्य करने वाली महिलाओं को साझा करने के लिए कोई कविता मांगी, कुछ तैयार था नहीं पर जो हो पाया वही उन्हें भी भेज दिया, आप को भी पढ़ा ही देते हैं:-) पर ध्यान रहे सिर्फ एक दिन मनाने भर से काम नहीं चलेगा, हर दिन ही एक उत्सव हो उनके होने का, हर दिन त्यौहार हो ..वो क्या है न कि कई बार बड़ी देर हो जाती है ये समझ पाते-पाते .. आइये कविता पढ़ें  .



तुझसे ही पहले शब्द मिले 
तेरे ही सारे संस्कार ये है 
तेरा होना ही एक उत्सव है 
तू है तो हर दिन त्यौहार है  

है रूप अनेकों तेरे हैं 
तेरे ही रंगों से संसार चले 
तुझसे ही घर, घर बन पाए 
तुझसे ही तो परिवार जुड़े 

तू ही प्रेरणा, तू ही लगन 
तू आस्था, तू ही अनुशाषन 
ममता, स्नेह व् प्रेम तू ही  
तू ही साहस, तू ही संयम

तुझमे सपनो का दरिया 
है हौसलों की पतवार तू ही  
तुझसे ही पाया जीवन है 
तेरे होने से ही है जीवन ही 
तेरा होना ही एक उत्सव है 
तू है तो हर दिन त्यौहार है 


Theme/Subject by: Shubhangini Vatturkar
Image: Google से साभार  

Friday, November 25, 2016

मुश्किल ये है की, खुल कर बात होती नहीं ..

हम सब न जाने कितनी ही कहानियां, अनुभव, दर्द , चिंताएं आदि लिया फिरते हैं। जिसे किसीसे बांटना चाहते हैं, बताना चाहते हैं।  पर किसे? हर बात हर किसीसे तो नहीं कही जाती न ? आप कहेंगे किसी अपने से, पर अपने-अपनों में भी नाना प्रकार के भाव निकलते हैं (क्या सोचेंगे, क्या समझेंगे, क्रोधित होंगे, वगेरह वगेरह) । इसी चक्कर में एक भोज बढ़ता जाता है जिससे एक तरह का डिप्रेशन भी जन्म लेता है। 

जापान में तो अकेलापन इस कदर हावी हुवा की हर कोई ग्रस्त है। एक युवा (Takanobu Nishimoto) ने इस समस्या का समाधान निकाला और बाकायदा एक व्यवसाय बना डाला (Ossan - Rent men), इनके सदस्य आपको बड़ी आत्मीयता से सुनते हैं, इनसे आप कुछ भी बात कर सकते है, कह सकते हैं, बिना किसी जिझक और चिंता के। बदले में इन्हें एक घंटे का लगभग एक डॉलर प्राप्त होता है।  भारत में ये सुविधा मैं सुरु करना चाहूंगा, कृपया संपर्क करें:-) कुंवारी कन्याओं के लिए विशेष छूट :-). 

चलिए कविता पढिये और खुल कर बतियाना शुरू कर दीजिये बस ..     


हर किसी के मन में 
है इक पिटारा भरा हुवा  
मुश्किल ये है की  
खुल कर बात होती नहीं 

किसे है वक़्त फुरसत वाला 
कहाँ धीरज ही है सुनने की, 
समझने की 
जैसी चाहिए वैसी 
मुलाक़ात होती नहीं 
मुश्किल ये है की, 
खुल कर बात होती नहीं ..   

इक झिझक सी हैं कहीं 
कहने में, बताने में 
क्या सवाल होंगे
क्या सोचेंगे, क्या समझेंगे 
क्या प्रतिक्रिया होगी 
झुंझलाहट ये 
समाप्त होती नहीं 
मुश्किल ये है की, 
खुल कर बात होती नहीं ..   

डर भी है बना
हर पर्सनल वाली बात पर  
कहीं ये बातों-बातों में 
फैलेगी तो नहीं 
इस भरोसे के कहीं 
कागजात होते नहीं 
मुश्किल ये है की, 
खुल कर बात होती नहीं ..   

और वो बिन मांगे मिलनेवाली 
सलाह हर बात में 
हर बात के अनुपात में
किसी भी विषय में क्यों हम  
अज्ञात होते नहीं ?
मुश्किल ये है की, 
खुल कर बात होती नहीं ..   

Saturday, September 3, 2016

पोर्टरेट ऑफ किरायेदार


हर वो मकान याद है, 
जिसे हमने घर बनाया था
दीवारों में जब बस जाए परिवार, जीवन  
उसे ही घर कहते हैं न ? 

बड़ी बारीकी से टंटोला था, 
हर बार खाली करते समय 
कहीं कुछ रह न जायें, छूट न जाये 
पर फिर भी रह गया; कुछ न कुछ; 
नहीं बल्कि बहुत कुछ

सामान वगैरह तो ज्यादा नहीं 
पर वो जिंदगी जो हमने जी थी वहाँ  
लम्हे हंसी-ठिठोलियों के, ख़ुशी के 
वो संघर्ष जो लड़ते रहे, 
या गम जो बाँट लिए 

वो सपने अधूरेवाले 
आज भी पड़े होंगे कहीं; 
अलमारियों के कोने में  
वो कील जो लगा दी थी दीवालों पे हमने, 
उन्हें अपना सा समझकर   
वो खिड़कियां, नज़ारे
वो बीत मौसम, सुबह शाम 

इन्ही में कहीं कोई 
जो छोड़ गया साथ 
मुरझा गया था वो घर भी मकान होकर 
छूट ही तो गया न सब 

न जाने कितने ही मकान 
राह तकते होंगे हमारी, 
कोई आये थोड़ा जीवन मिले 
फिर से ये चार दीवारी घर बने 


   








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